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Rajesh Gambhir  | संत तिलोपा की बड़ी ख्याति थी। उनके बारे में कहा जाता था कि उनके पास प्रत्येक प्रश्न का उत्तर था। ऐसा सुनकर मौलुक पुत्त नाम का दार्शनिक उनके पास अपनी शंका के समाधान के लिए आया। संत ने उसके सभी प्रश्नों को बड़े धैर्य से सुना और बोले, 'क्या तुम सच ही उत्तर चाहते हो। क्या इसकी कीमत चुका सकोगे?' यह सुनकर मौलुक पुत्त ने सोचा कि अब तक मैं सारे जीवन केवल सवाल ही पूछता रहा। उत्तर भी बहुत मिले, लेकिन कोई सही उत्तर नहीं मिल सका। यह पहले व्यक्ति हैं जो मेरे सभी प्रश्नों का सही उत्तर देने के लिए तैयार हैं। उसने कीमत चुकाने के लिए हामी भर दी। तिलोपा ने कहा, 'तब ठीक है, क्योंकि मेरे पास लोग सवाल लेकर आते हैं, पर जवाब की कीमत चुकाने के लिए राजी नहीं होते। बहुत दिनों बाद आने वाले तुम ऐसे व्यक्ति हो जो कीमत चुकाने के लिए राजी हुए हो। कीमत यह है कि तुम्हें दो वर्ष मेरे पास चुप बैठना पड़ेगा। इस बीच तुम्हें बिलकुल भी नहीं बोलना है, चाहे कोई कष्ट हो या परेशानी अथवा कोई अन्य कारण, तुम्हें बस चुप रहना है। जब दो वर्ष बीत जाएंगे तो मैं तुमसे खुद ही पूछ लूंगा। फिर तुम पूछ लेना, जो भी तुम्हें पूछना हो। मैं वादा करता हूं कि तुम्हें तुम्हारे सभी सवालों के सही जवाब दे दूंगा।' विचित्र कीमत थी यह, पर कोई और उपाय भी तो न था। मौलुक पुत्त तैयार हो गया। वह दो वर्षों तक तिलोपा के पास रुका रहा। दो वर्ष बीत गए, तिलोपा भी भूले नहीं, तिथि वार सभी कुछ उन्होंने याद रखा। समय आने पर उन्होंने उससे अपने सवाल पूछने के लिए कहा, तो उसने बड़ी विनम्रता से अपना सिर झुकाते हुए कहा, 'आपकी कृपा से मैं अपना उत्तर पा गया। आपको शास्त्रों का अध्ययन करते सुना और मैं सब कुछ समझ गया। सचमुच किसी को शिक्षित करने का यह सर्वोत्तम तरीका है।' |
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