From: Madan Gopal Garga <mggarga2013@gmail.com>
Date: 2015-07-25 13:30 GMT+05:30
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To: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>
ज़रूर पढ़ें बढ़ी ही गहरी बात लिख दी है किसी शक्शियत नें 👌👌👌👉
बेजुबान पत्थर पे लदे हैं करोडो के गहने मंदिरो में।
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।।
सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूरत के आगे ।
बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है ।।
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार ,पर।
बहार एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।।
वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हाल के लिए।
घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।।
सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को।
आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।।
जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन।
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है।।
जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी।।
आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है।।
मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारो।
जिसे खुदको काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है।।
जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों।
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।।
इस कविता को मैने आप तक पहुंचाने मे र्सिफ उंगली का उपयोग किया है..
रचियता को सादर नमन🙏🙏🙏
बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर,
अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।
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आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर,
अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता।
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गिद्ध भी कहीं चले गए
लगता है उन्होंने देख लिया कि,
इंसान हमसे अच्छा नोंचता है।
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🙏

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