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Monday, January 16, 2012

जंगल में इतिहास दोहराया जा रहा था। एक बार फिर...



---------- Forwarded message ----------
From: Rajesh Gambhir
 जंगल में इतिहास दोहराया जा रहा था। एक बार फिर...
To: VISHWA JAGRITI MISSION 


जंगल में इतिहास दोहराया जा रहा था। एक बार फिर...
Rajesh Gambhir 16 January 11:12
जंगल में इतिहास दोहराया जा रहा था। एक बार फिर कछुए और खरगोश की दौड़ होने जा रही थी। इसे देखने के लिए जंगल के सभी जानवर आए थे। राजा शेरसिंह ने विजेता को पुरस्कार देने की घोषणा भी कर दी थी। दौड़ शुरू होने से पहले कछुए ने खरगोश से कहा, 'मेरे पूर्वज ने तुम्हारे पूर्वज को हराया था। आज भी कुछ ऐसा ही होगा। आज भी तुम्हें हार का मुंह देखना पड़ेगा।'
कुछ ही देर में दौड़ शुरू हो गई। दोनों अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार दौड़ने लगे। खरगोश दौड़ते-दौड़ते काफी आगे निकल गया। वह थक गया था। इसलिए एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा। कुछ ही देर में उसकी आंख लग गई। कछुआ भी उसके पीछे आ पहुंचा। रास्ते में जब उसने खरगोश को सोते देखा तो सोचा- यह भी अपने पूर्वज की तरह ही आलसी है। यह सोता ही रहेगा और हार जाएगा। आखिर जीतना तो मुझे ही है इसलिए क्यों न मैं भी कुछ देर आराम कर लूं।
कछुआ भी पेड़ की छाया में आराम करने लगा। उसे भी नींद आ गई। खरगोश की नींद टूटी तो काफी समय बीत चुका था। उसे याद आई अपने पूर्वज की वह गलती, जिस कारण उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। वह तुरंत दौड़ पड़ा। कुछ ही देर में वह अपनी मंजिल तक पहुंच गया। उधर जब कछुए की नींद टूटी तो वह भी मंजिल तक पहुंचने के लिए निकल पड़ा। पर जब तक वह पहुंचा तब तक काफी देर हो चुकी थी। वह हार चुका था। खरगोश को शेरसिंह ने पुरस्कार दिया।
जानवरों ने खरगोश को विजेता बनने पर उसे खूब बधाइयां दी। राजा शेरसिंह ने कछुए से कहा, 'जो लोग गलतियों को याद रखते हैं और उनको दोहराते नहीं सफलता उन्हीं को मिलती है।' कछुए को अपनी गलती का अहसास हो चुका था, लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता था।

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